Archive for February, 2011

February 23, 2011

suffering…nothing…

We are committed to suffering
we want to suffer
we are so linked to this idea
of life being a suffering
of life being nothing without suffering
we keep defining suffering
we keep finding pleasure in its contrast
not knowing that it all means nothing
this life, suffering and pleasure
for we are nothing, nothing is really us

February 21, 2011

हुआ एकाकी पथ…

हुआ एकाकी पथ
कि संग कोई नहीं आया
चले थे साथ पल दो कल
पर आज तो कोई नहीं आया

मिले थे साथी थे बहुधा रंग
हिलती थी कली जाने किस तरंग
सुन्न सन्नाटे में भी न देता आवाज़
रहती थी मदमाती रंगीनियाँ मुझ संग
मस्त था ना पी थी मदिरा न ही भंग
जैसे गीत कोई गा रहा था बैठ मन अन्तरंग
आँखें मूँद चलता था, खोल कर रहता था अनमन
कब मुड़ा औ कब गिरा ना देख पाया कि गली थी तंग
छिड़ी थी जाने कैसी जंग हुए बाजू मेरे भी तब सुन्न
गीत मद्धिम पड़ गया शोर सा कुछ बढ़ गया
कान पकड़े बैठ नीचे रहा जाने कितनी देर मैं बेदम
हुआ फिर शोर भी कुछ कम रहा था सब कुछ ही थम
खड़ा था बीच एक भंवर मैं आँखे मींचे रहा था सोच
हुआ कब ये हुआ जब ये कहाँ था मैं कहाँ थे हम
शोर आया फिर कहीं से जोर से जैसे किसी ने पुकारा
चौंक देखा चहु ओर तो जाना था ये जवाब नहीं पुकार
बोलते था हर एक जन कि अब तो बोल उट्ठे थे पत्थर
कहते थे क्या पूछते हो हम कबसे चीखते हैं
पर तुम कब चीन्हते हो कि हम जब चीखते हैं
हम यहाँ है हम यही थे नहीं था कोई भी यहाँ गुम
पूछते आये हम सदा से, हम यहाँ हैं कहाँ हो तुम?
नहीं था जवाब उनके पास नहीं था प्रश्न मेरे पास
बैठा फिर से कान दाबे जाने कितनी देर
जब ये विचार आया नया संज्ञान आया
न लाया कुछ भी अपने साथ वो विज्ञान आया
सब कुछ जान कर रोता था वो नादान आया
नग्न था वो बाल्य न था उसके पास कोई रहस्य
बोला कान में कुछ फुसफुसा के
हंसा फिर रोया जब मैं भड़भड़ा के
है कैसी सोच तेरी है कैसा तू निरा नादान
आँखें खोल अपनी ओर जगत की रीत तू पहचान
में हूँ तेरे साथ बना हूँ जान कर नादान
तू थाम मेरी उंगली दिखा राह मुझको
ए नादान ये एक बात इतनी सी जान
हुआ है पथ एकाकी कि संग कोई नहीं आया
ले तू जिसको साथ इतना तुझे कोई नहीं भाया
है ये सच यही है सच कि न रह इतना तू भरमाया
मैं हूँ साथ फिर क्या बात पकड़ ले हाथ
कि गा ले गीत वो जिसको कोई नहीं गाया
कह दे वो बात जिसको नहीं कोई भी कह पाया
हुयें हैं सब एकाकी नहीं कुछ भी हाथ बाकी
घुटते हैं लेकर मन यही एक बात
जो कहते नहीं कभी वो आप अपने आप
कि हुआ है पथ एकाकी
कि संग कोई नहीं आया
चले थे साथ पल दो कल
पर आज तो कोई नहीं आया

पर मैं हूँ साथ सुनूँ हर बात
कहे तू या रख ले अपने ही पास
है वो ही मंत्र मेरे पास
जो कोई ढूंढ़ नहीं पाया
चल तू मेरे साथ
कि हँसता चल ओर गाता चल
कि हुआ है पथ एकाकी
कि संग कोई नहीं आया
चले थे साथ पल दो कल
पर आज तो कोई नहीं आया

February 8, 2011

माँ ठीक कहा करती थी…

माँ कहती थी,
सब ठीक हो जायेगा
सब ठीक हो गया
माँ ठीक कहा करती थी

दूर उसके गाँव में
उसके घर के पिछवाड़े
एक धीमी नदी बहती थी
ऐसा वो नहीं कहती थी
वहां कोई नदी नहीं बहती थी
माँ ठीक कहा करती थी

जो सोचा है सब हो जायेगा
बिन माँगा भी मिल जायेगा
ढाढस की थपकियों के बीच
वो ये भी कहा करती थी
कुछ तितिर बितिर सा हुआ तो है
कुछ मांगे जैसा मिला तो है
जाने वो क्यूँ कहा करती थी
माँ जो भी कहा करती थी
मैं सब कुछ कहाँ समझ पाती हूँ
वो ये भी तो कहा करती थी
माँ ठीक कहा करती थी
वो जो भी कहा करती थी

February 6, 2011

दिया हूँ…

सब मिल गया तो रोऊँगा कैसे
रोऊँगा नहीं तो होऊंगा कैसे
होऊंगा नहीं तो पाऊँगा कैसे
पाया नहीं तो खोऊंगा कैसे

मिलते मिलते रह जाने में
सब पाकर कुछ रह जाने में
अजीब कसक है जाने कैसी
पूरा हूँ अधूरा रह जाने में

जगमग रोशनी देख जला हूँ
दिया हूँ, अँधेरा देख जिया हूँ
जलते जलते जान लिया है
कुछ भी नहीं है बुझ जाने में