Archive for May, 2016

May 4, 2016

श्याम वर्ण आसमां
स्याह रंग रास्ते
काठ के पैर
पतले तल्ले के जूते
जमीन दागी करते हुये
चलते हुए जैसे साइकल का पहिया
गोल गोल, गोल गोल, गोल गोल

उँगलियों के नट बोल्ट खोल
टेबल पर रखे
अंदर थीं मांस की लचीली हो चली डंडियाँ
सफ़ेद हो चलीं, सुन्न हो चुकी
चटकाना अभी मुमकिन न था

बाहर, बल्ब की धूप में
घूम रहे थे बेचैन साये
पैर जाना चाह रहे अलग अलग
पर संग बंधे सायकल की चेन से
पतीले की चाय उबाल ले चुकी थी
और दिन भर में मर चुकी परत
आहिस्ता आहिस्ता उतर रही थी

क्यूंकि आदमी किसी एक दिन नहीं मरता
आदमी हर एक दिन मरता है


 

वक़्त
गोल, चौकोर या अण्डाकार
या एक सपाट जमीन
जिस पर चलने का अहसास है
होने का नहीं

खिड़की से झरती रौशनी
रूम की दीवारों को करती सुसज्जित
स्पष्ट नज़र आती उनपर टंगी तस्वीरें
पर वो फिर भी ढका रह गया
जो लेटा है उसी झरोखे के नीचे
दीवार से लग के, दीवार में घुस के


 

जो आज वैलुएबल लगता है
कल माटी हो जायेगा
जीवन का चिल्लर है समय
सूद समेत खो जायेगा
नोट जनम का कोई खोज न पाया
ग्यानी ध्यानी या पागल पीछे माया
जाली की कोई पहचान नहीं
जो चल जाये वही असली है

बिन बारिश सब गीला है
लगे कसा पर ढीला है
दौड़ो देखो बैठ न जाना
रहो खड़े कहीं लेट न जाना
सर पर हाथ लगा के रखना
पैरों में उबटन मलते रहना
वक़्त तुम्हारा आएगा
जाली भी चल जायेगा
थूकोगे, अमृत कहलाएगा
समझो बैंक बन गए हो
मार्किट में तुम भी चल गए हो
कर्रेंसी अपनी बचा के रखना
सबको इन्फ्लैटेड वैल्यू बताते रहना
थोड़ा गोल्ड बनाते रहना
बैंक एक दिन रुक जायेगा
बन कपूर वक़्त उड़ जायेगा
असली भी नकली कहलायेगा
कुछ चिल्लर बचा के रखना
नोट यहाँ वहां दबा के रखना
खेल जुआं मन बहलाते रहना
आशिकों की बरात में बैंड बजाना
पत्थर की फिर पतंग उड़ाना
पानी की नाव चलाते रहना
जिन अर्थों का कोई अर्थ नहीं है
उनका अर्थ बनाते रहना
जाने कब क्या चल जायेगा
कब क्या वैल्युएबल हो जायेगा
वक़्त का क्या है, है बड़ा जुआरी
बन चौसर फिर बिछ जायेगा