समंदर की लहरों के बीच पानी की एक बूँद
सूरज की किरणों में चमकता धूल का एक कतरा
वक़्त का रिसता हुआ एक पल
हाथों के स्पर्श को ढूंढता उढ़का हुआ दरवाज़ा
पर खुलने का इंतज़ार करती चिड़िया
वादियों में बहता हुआ एक कम्बल
आँखें मींचे कृतिम ध्यान में लीन साधु
ढलान पे खिसकती साइकिल
आज आईने ने कोई शक्ल अख्तयार नहीं की
सारे मुखोटे उतर गए