देर हो चली है, शायद देर हो चली है
सोये थे जिसे बिस्तर समझ,
वो मय्यत उठ चली है
अरे रुको, जरा ठहरो, आह भर लेने दो
कुछ लकड़ियाँ यहाँ से भी ले चलो
ये मेरे यार की गली है
सुना है एक घर ऐसा भी है जिसमें कोई दरवाज़ा ही नहीं है
ढूढने वाला दरवाज़ा ढूँढता रहता है, कभी खटखटाता नहीं है
इंतज़ार में मेरे रहता है वहां वही जिसे कहता ज़माना ‘अली’ है
ले चलो जल्दी, कहीं देर न हो जाये, अब वोही तो मेरा ‘वली’ है
——————————————————–
क्या मालूम है तुम्हें
क्या हो गया है मुझे
जो काँटा उगा भी न था
वो चुभने लगा है मुझे
——————————————————–