ढूंढ रहे थे कल भी, ढूंढ रहे हैं आज भी
खोये हुये थे कल भी, खोये हुये हैं आज भी
हाथ जहाँ भी रखा निशान छूटते गए
ज़ुर्म जहाँ जो हुआ, गुनहगार पाये गए आप ही
बिखरी हुयी शक्सियत, बिखरे हैं हालात भी
जिस्म में पर छेद हैं, हिलते हुये हैं हाथ भी
आदमी हैं, आदमी थे, आदम ही रहना चाहते थे
हुयी मुलाकाते यूँ आदमों से, ये जज़बात भी खो गए
एक खून हुआ था, सदियां हैं पर बीत गयी
कपडों के किनारों पे मिलते हैं छिटें आज भी
सराय में हम आये थे, छुप के रहेंगे चंद दिन
सराय भी खुद टूट ली, पर चढ़ता किराया आज भी
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