ज़िन्दगी अब तुझसे कोई वादा ना रहा
इरादतन जीने का तुझे इरादा ना रहा
जुस्तजू थी हमको जिसकी, वो मंजिल भी आ गयी
मंजिल तो मिल गयी पर, वो जुस्तजू ही ना रही
ये जुनून-ऐ-जुस्तजू है, या जुस्तजू-ऐ-जुनून है
ज़िन्दगी किसी पहेली में फंसे रहने का खेल है
ना होती जो ये उल्फत, तो कोई और गफ़लत होती
जो ये तड़प ना होती, ये फितरत भी तो ना होती
सौ ज़वाब मिलते, तो भी सवाल होते
हर बला से छूटे, तो भी बवाल होते
दुनिया है क्या बस ख़ाक-ऐ-परस्ती है
बुझती हुयी शमा के परवानों की बस्ती है
मालिक ने दे दिए हैं सबको चार दिन
काटने को इनको दिए दो ख़ुशी दो ग़म
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